भारत में बिखरता सत्ता समंवय ! इस बहस को मजबूत करने के लिये मेरा समर्थन संतोष प्रताप सिंह लोक सभा बलिया के भावी उम्मीदवार
बहस तलब मुद्दा। भारत में बिखरता सत्ता समंवय ! 1947 में आजादी मिलने के बाद संविधान सभा में विचार विमर्श और विद्वतापूर्ण बहसों के बाद भारत के लगभग सभी विचारधाराओं के लोगों ने संविधान को सर्वसहमति से स्वीकार किया था। यानी नवजात भारतीय राष्ट्र राज्य के शासक वर्ग को उस समय सर्वभौम संघात्मक गणतांत्रिक भारत की संरचना ही सबसे ज्यादा उपयुक्त लगी थी। इसको दो उदाहरण से देखा जा सकता है। एक- डॉक्टर अंबेडकर की सोच थी कि भारतीय समाज के लोकतांत्रिक रूपांतरण केलिए वर्ण व्यवस्था यानी जाति का विनाश पहली शर्त है। नहीं तो लोकतंत्र को टिकाए नहीं रखा जा सकता।इस समझ से अधिकांश संविधान सभा के सदस्य अपनी वर्ण वादी सोच के कारण सहमत नहीं थे।इसके बाद भी डॉक्टर अंबेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। दूसरा- दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वर्ण व्यवस्था समर्थक बाबू राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे हिंदू महासभा के नेता और मौलाना हसरत मोहानी सहित कई घोषित कम्युनिस्ट और सोसलिस्ट भी संविधान सभा ...






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