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उठो जागो और हुंकार भरो कि-जबतक दु:शासन दशानन जिन्दा???

 उठो जागो और हुंकार भरो कि-जबतक दु:शासन दशानन जिन्दा???


तुम्हीं से जिन्दा है इंसानियत, इंसानी वजूद और इंसानी अस्मिता ।

फिर भी बेशर्म मर्दपरस्ती ओढे दरिन्दगी बार-बार ललकारती है तेरे वजूद, तेरी अस्मिता को। ।

इसलिए आइने में सौन्दर्य निहारने वाली बसुन्धरा की शक्तिस्वरूपाओं सुनों !

मत इतराओं आइने में अपना श्रृंगार देखकर, भूल जाओ सौन्दर्य प्रतियोगिताओं की नुमाईशी समीक्षा को,

स्मरण करो अब शकुन्तला का तिरस्कार,द्रौपदी का चीरहरण और सीता की अग्नि परीक्षा को। 

अब आइने में सदियों की अपनी  व्यथा वेदना आहों कराहों चीखो चित्कारो को ढूँढो ।

इतिहास में दर्ज अपने हिस्से के संघर्ष  बलिदान मूल्यों मर्यादाओ की बलिवेदी पर जौहरी प्रथाओं को ढूँढो ।

तेरी आँखों में सिर्फ झील तेरे गालों मे सिर्फ गुलाब ढूंढने वाले,

तुझे तमाशाई नुमाईशी किसी दुकान किसी बाजार की सिर्फ कठपुतली बना सकते हैं। 

फ़ितरतबाज ऐय्याश मर्दपस्ती तुम्हें सिर्फ सेज सजावट और श्रृंगार का सामान बना सकती हैं। 

तेरे रूप लावण्य के कसीदे पढ़ने वाले तेरी हकीकत से तुम्हें गुमराह करते हैं,

तेरे तन-बदन नयन-नक्श पर कविताएँ   

लिखने वाले तुम्हें भटकने को मजबूर करते हैं। 

तेरे कलाई की खनकती चूडियों ने नहीं,तेरे हाथों से उठी तलवारो ने इतिहास बनाया है। 

तेरे पैरों की पायल ने नहीं हक हूकूक हूकूमत के लिए उठे तेरे कदमो ने तुम्हें लक्ष्मी बाई रजिया सुल्तान बनाया है। 

हर युग की दुर्गा चंडी और काली का अवतार है तूॅ ,

हर युग के कुरूक्षेत्र में हर दौर के रणसंग्रामो में  लक्ष्मीबाई का  तलवार है तूॅ।

उठो जागो और हुंकार भरो कि- जबतक दुःशासन और दशानन जिन्दा है। 

चीखो चित्कारो का वक्त नहीं सिंहवाहिनी सा सिंहनाद करो कि- जबतक मेधा मनीषा के कातिल जिन्दा हैं।


  मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

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