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पढाई, दवाई और कमाई के लिए पलायन हमारे नीति निर्माताओं की नाकामी का द्योतक---

 पढाई, दवाई और कमाई के लिए पलायन हमारे नीति निर्माताओं की नाकामी का द्योतक---



  2020 बिहार विधानसभा के चुनाव में कविताई अंदाज में भाषण देते हुए सीमांचल की एक जनसभा में तेजस्वी यादव ने कहा था कि- बिहार के लोगों को पढ़ाई, कमाई और दवाई के लिए बाहर जाना पड़ता है। हम ऐसी नीतियां बनाएंगे जिसमें पढ़ाई ,कमाई और दवाई के लिए किसी भी बिहारी को बाहर नहीं जाना पड़ेगा । तेजस्वी यादव का यह वादा और भाषण बार-बार बार चुनावी मंचों से लगभग सभी दलों के मंच से उछाला जाता रहा हैं। दुर्भाग्य से यह वादा और नारा जनता को छलावा देने वाला  कोरा नारा बनकर रह जाता है और जमीन पर कभी भी खरा नहीं उतरता है।  परन्तु तेजस्वी यादव द्वारा वादे रूप में उठाया गया यह नारा बुनियादी और गम्भीर विषय बनकर बिहार और पूर्वांचल के बुद्धिजीवियों, राजनीतिक ,आर्थिक विश्लेषको और स्वाभिमानी चरित्र के राजनीतिज्ञों के लिए चिंतन-मनन और गहराई से आत्म-विश्लेषण करने का विषय जरूर बन गया है। पढाई, दवाई और कमाई के लिए पलायन यह दर्शाता है कि- शिक्षा, चिकित्सा और रोजी-रोटी जैसी बुनियादी समस्याओं पर हमारे नेताओं द्वारा गम्भीरता से विचार नहीं किया गया। 

   जब डार्विन अपने देश के लोगों को समझा रहा था कि- हम बन्दर की औलाद है उससे हजार साल पहले चाणक्य और चन्द्रगुप्त के बिहार में नालंदा,बोधगया, विक्रमशिला जैसी ज्ञान की एक दर्जन महान ध्वजपताकाऐ फहरा रही थी और जिसकी गूंज और गंध पूरी दुनिया में फैली हुई थी । इस देश के कोने-कोने से एवं दुनिया के तमाम देशो से लोग अपनी ज्ञान पिपासा को शांत करने के लिए इन विश्वविद्यालयों में अध्ययन हेतु आते रहते थे । ह्वेनसांग और फाह्यान जैसे अनगिनत उदाहरण इतिहास केपन्नों में खोजने खंघालने पर हमें मिल जाएगे । जो पवित्र पावन भूमि ॠषभदेव से लेकर महावीर स्वामी जैसे चौबीस तीर्थंकरो और सत्य अहिंसा करूणा दया परोपकार की साक्षात प्रतिमूर्ति महात्मा बुद्ध जैसे सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक चेतना से परिपूर्ण व्यक्तित्वो की सृजनात्मक ,रचनात्मक और मानवतावादी चिंतनधारा और ज्ञान गंगा से निरन्तर अभिसिंचींत होती रही और आज भी पूरा विश्व इन महापुरुषों के दिव्य ज्ञान और दर्शन से दिव्यालोकित हो रहा है आज उसी बिहार और पूर्वांचल का नौजवान बेहतर जिन्दगी की आस में बेहतर रोजगारपरक शिक्षा के लिए देश के विभिन्न शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानो में  पढ़ाई-लिखाई के लिए भटकता रहता हैं । यह गहन अध्ययन और चिंतन का विषय है कि-जिस धरती पर पूरी दुनिया से अपनी ज्ञान क्षुधा तृप्त करने के लिए लोग आते रहते थे आज उसी माटी के लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश के दूसरे राज्यों के शिक्षण संस्थानों में मे भटक रहे हैं। मेरा स्पष्ट अभिमत है कि- देश के सर्वोच्च नीति नियंताओं की नियत में खोंट , दूरदर्शिता का अभाव और शिक्षा के ईमानदारी से विकेंद्रीकरण न करने के कारण इस तरह शैक्षणिक दुर्व्यवस्था देखने को मिल रही हैं। देश के हर नागरिक को दुनिया की सबसे बेहतर गुणवत्तापरक और आधुनिक शिक्षा उसकी भाषायी परिसीमा,आंचलिक आंगन के भीतर प्राप्त होनी चाहिए । देश के सर्वोच्च नीति नियंताओं की शिक्षा के प्रति उदासीनता, कामचलाऊ आचरण और ईमानदारी से शिक्षा का विकेंद्रीकरण न कर पाने के कारण पूरे पूर्वांचल और बिहार में शिक्षा के लिए छात्रों और नौजवानों में यह भटकाव देखने को मिलता है । आज पूर्वांचल और बिहार के लोगों को उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के लिए अपने घर से  हजारों मील दूर जाना पड़ता है । इस देश का बेहतर भविष्य चाहने वाले नेताओं को बेहतर शिक्षा केन्द्रों के विस्तार और विकेंद्रीकरण पर सारी  संकीर्णताओं का परित्याग कर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। इस दिशा में स्वर्गीय राजीव गाँधी द्वारा देश के हर जनपद में नवोदय विद्यालय स्थापित करने की पहल शिक्षा के विकेन्द्रीकरण की तरफ ठोस और सकारात्मक और क्रांतिकारी कदम था । इसी तर्ज पर पढने वाले विद्यार्थियो की संख्या को ध्यान में रखकर  पूर्वांचल और बिहार में भारतीय उच्च शिक्षा के शिक्षण संस्थानों,भारतीय  प्रौद्यौगिकी संस्थान ( I I T) और भारतीय प्रबन्धन संस्थान ( I I M )  पर्याप्त मात्रा में स्थापित करने चाहिए । यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि- देश-सेवा समाज- सेवा और जन-सेवा का हवाला देकर राजनीति करने वाले राजनीतिक सूरमा अपनी औलादो को इंग्लैंड आस्ट्रेलिया जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में पढने के लिए भेजकर न केवल इस देश की महान ज्ञान परम्परा का अपमान करते हैं अपितु समानता जैसे पवित्र संवैधानिक मूल्यों का भी निरादर  करते हैं।  

   जिन पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश के विकास के लिए शानदार विकास की योजनाएं परियोजनाएं बनाई और चलाई गई और यह सत्य है कि इन  विकास योजनाओं द्वारा देश ने विकास के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किये परन्तु यह समग्र और संतुलित नहीं रहा । देश के नीति निर्माताओं द्वारा हर बार पंचवर्षीय योजनाओं की उद्घोषणाओं में यह  बार-बार यह उल्लेख किया जाता रहा  कि  देश का समग्र, सर्वांगीण और संतुलित विकास शासन सत्ता का संकल्प है । पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा शानदार विकास हुआ लेकिन वह क्षेत्रीय असंतुलन का शिकार हो गया और। आज इस देश के कुछ राज्य बहुआयामी  विकास की रफ्तार पकड़ चुके हैं तो कुछ राज्य बीमारू राज्यों की श्रेणी में आ गये हैं । पंचवर्षीय योजनाओं और दिल्ली के हुक्मरानों द्वारा ढोल नगाड़े जरूर बजाए गए कि- हम देश का समग्र और संतुलित विकास के प्रति प्रतिबद्ध है। परंतु प्रत्येक सरकारों द्वारा बिहार और पूर्वांचल की पूरी तरह उपेक्षा हूई । कारगर पारदर्शी आर्थिक नीतियों के अभाव और दिल्ली की सरकारों के सौतेलेपन के कारण पूर्वांचल और बिहार का औद्योगिकरण नहीं हो पाया । उद्योग धंधों के पर्याप्त मात्रा में विकास न होने के कारण बिहार और पूर्वांचल के लोगों को रोजी-रोजगार की तलाश में देश के बड़े शहरों महानगरों में जाना पड़ता है। वहां मेहनत मजदूरी जरूर करते हैं महानगरों को अपने परिश्रम पौरूष और पसीने से सजाते संवारते है। फिर भी वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा कभी- कभी अपमानित भी किए जाते है । पूर्वांचल और बिहार के छात्रों नौजवानों मे अद्वितीय उर्जा और उत्साह है और प्रतिभा, कुशाग्रता , कुशलता ,परिश्रम, पराक्रम और पुरुषार्थ भी कूट कूट कर भरा हुआ है परन्तु दूरदर्शीतापूर्ण नीतियों और स्पष्ट रोड मैप के अभाव के कारण पूरा पूर्वांचल और बिहार आज भी आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक पिछड़ेपन का शिकार हैं। आजादी के बाद से अबतक पूरब से उगने वाले विकास के हर सूरज का आज भी हर रोज इंतजार पूर्वांचल और बिहार की माटी कर रही हैं और इस माटी का हर नौजवान उस सुनहरी भोर का इंतजार कर रहा है जिस भोर से भावी पीढ़ी को देश दुनिया में सैर सपाटे के लिए तो जाना पडे पर कम से कम पढाई कमाई और दवाई के अपना परिवार अपना प्रदेश कभी भी किसी भी परिस्थिति में न छोड़ना पडे। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

लेखक/ साहित्यकार/ उप सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका।

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