श्रमिक दिवस
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पश्चिमी देशों , खास तौर से अमरीकी और यूरोपीय देशों में औद्योगीकरण के शुरुआती दौर में कारखानों व फैक्ट्रियों में सस्ते मजदूरी पर मजदूरों की आवश्यकता महसूस होने लगी । श्रमिकों से अधिकाधिक काम कराना और उत्पाद के अनुपात में न्यूनतम मजदूरी दिया जाना उस दौर की प्रमुख समस्या रही। मुनाफा हासिल करने की होड़ में क्रमशः मजदूर शोषण के भंवर जाल में उलझते चले गये।पूॅंजीपति और श्रमिक वर्ग के बीच अपने -अपने हितों को लेकर टकराव बढ़ने लगा और शोषण की जटिल तकनीक से उत्पीड़ित श्रमिक वर्ग धीरे - धीरे संगठित होने लगा और शोषण के खिलाफ आन्दोलन का रास्ता अख्तियार करना मुनासिब समझा।
वास्तव में मजदूर दिवस की बुनियाद अमरीका में 1886 में हुए श्रमिक आंदोलन से जुड़ी है।उसी आन्दोलन की बदौलत आज रोजाना काम करने के आठ घण्टे निर्धारित हैं और सप्ताह में एक दिन अवकाश का अधिकार हासिल है।1886 के श्रमिक आंदोलन के पहले अमरीका में श्रमिकों से 15-15 घण्टे काम लिया जाता था। लाखों मजदूरों ने श्रमिक शोषण के खिलाफ हड़ताल किया और सड़क पर उतरे। कई मजदूर पुलिस के गोली के शिकार हुए श्रमिक शोषण के विरुद्ध और श्रमिक अधिकारों की बहाली क़ायम रखने की स्मृति में आज के दिन मजदूर दिवस मनाया जाता है।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 को मद्रास में हुई। औपनिवेशिक दौर में भारत के कल- कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए कारखाना मालिकों की ओर से आवाज़ उठी। मालिकों ने मिलकर पहला कारखाना का कानून (First Factory Act) 1881 में निर्मित कराया। इस कानून के अधीन 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे को कारखाना में नहीं लगाया जा सकता था और 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने की घण्टों को कम किया गया।दूसरा कारखाना का कानून 1891 बना और उसके मुताबिक महिलाओं के काम करने का समय 11 घण्टे कर दिया गया।इन तथ्यों से जाहिर व साबित है कि श्रमिकों के शुभेच्छु दिखने वाले तत्कालीन कारखाना मालिकों ने श्रमिकों की दशा सुधारने के बावत जो कानून निर्मित कराया वह कानून भी श्रमिकों के शोषण का हथियार साबित हुआ। भारत में श्रमिकों के शोषण के खिलाफ व श्रमिक हित के पक्ष में अनेक ट्रेड यूनियन्स ने संघर्ष किया है। बम्बई के मजदूरों ने लोकमान्य तिलक को जेल दण्ड दिये जाने के विरोध में छः दिन की राजनैतिक हड़ताल किया।
मौजूदा समय में भारत की नई आर्थिक नीतियों और श्रमिक हितों के बीच टकराव है। नई आर्थिक नीतियों की बदौलत कारपोरेट हितों को साधने के वास्ते सियासत ने श्रमिक क़ानून को काफी हद तक कमजोर करने में कोई कसर बाकी नहीं रहने दिया। नई आर्थिक नीति श्रमिक विरोधी हैं, रोजगार विरोधी है,कृषि व किसान विरोधी है,गांव विरोधी है,जल -जंगल - जमीन विरोधी है। शोषण के खिलाफ और मानवता व प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के पक्ष में श्रमिक संघर्ष अपरिहार्य है।मई दिवस श्रमिक संघर्षों को याद करने का खास मौका है।
मई दिवस की हार्दिक बधाई।
मई दिवस पर विशेष।
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