समकालीन सियासत और उसके प्रभाव। (Contemporary politics and it's effect.) -------------- मौजूदा सियासत अखण्ड पाखण्ड लोक की बुनियाद मजबूत करने में लिप्त है। समाज की मूल प्रकृति पर इसका गहरा असर होता दिख रहा है। पूंजीवाद और पाखण्ड का चोली -दामन का रिश्ता है। यही वजह है कि मौजूदा सियासी नुमाइंदों को पूंजीवाद में ही मुक्ति का मार्ग दिखता है। वैसे तो आजादी से लेकर आज तक नेहरू के अलावे भारत का शासक वर्ग कमोवेश पूंजीवादी 'आनन्द लोक ' का मुरीद रहा है। पाखण्ड के फैलाव की वजह से सियासत के भीतर नैतिक मूल्यों का इस क़दर पतन हो चुका है कि शासक वर्ग और सियासी दलों की निगाह में जनता अब नागरिक नहीं महज़ 'वोट' (Vote) है। सन् 1991ई० के बाद बाजार जनित सियासत का सियासी सफर लागत -लाभ - विश्लेषण (Cost Benefit Analysis) की तर्ज पर टिकी बाजार के मुताबिक लोकतंत्र में वोट का बाजार खड़ा कर दिया है। इसलिए कथित चुनी हुई सरकारों को बनाने - बिगाड़ने में पूंजी की अहम भूमिका हो चली है। बाजारवादी अर्थ नीति ने जिस तरह की सियासत गढ़ी है, वह सम्यक लोकतंत्र नहीं हो सकता क्योंकि नई आर्थिक न
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