Skip to main content

समकालीन सियासत और उसके प्रभाव लेखक वरिष्ठ वकील श्री रंजीत सिंह

 समकालीन सियासत और उसके प्रभाव। (Contemporary politics and it's effect.) --------------                मौजूदा सियासत अखण्ड पाखण्ड लोक की बुनियाद मजबूत करने में लिप्त है। समाज की मूल प्रकृति पर इसका गहरा असर होता दिख रहा है। पूंजीवाद और पाखण्ड का चोली -दामन का रिश्ता है। यही वजह है कि मौजूदा सियासी नुमाइंदों को पूंजीवाद में ही मुक्ति का मार्ग दिखता है। वैसे तो आजादी से लेकर आज तक नेहरू के अलावे भारत का शासक वर्ग कमोवेश पूंजीवादी 'आनन्द लोक ' का मुरीद रहा है। पाखण्ड के फैलाव की वजह से सियासत के भीतर नैतिक मूल्यों का इस क़दर पतन हो चुका है कि शासक वर्ग और सियासी दलों की निगाह में जनता अब नागरिक नहीं महज़ 'वोट' (Vote) है। सन् 1991ई० के बाद बाजार जनित सियासत का सियासी सफर लागत -लाभ - विश्लेषण (Cost Benefit Analysis) की तर्ज पर टिकी बाजार के मुताबिक लोकतंत्र में वोट का बाजार खड़ा कर दिया है। इसलिए कथित चुनी हुई सरकारों को बनाने - बिगाड़ने में पूंजी की अहम भूमिका हो चली है। बाजारवादी अर्थ नीति ने जिस तरह की सियासत गढ़ी है, वह सम्यक लोकतंत्र नहीं हो सकता क्योंकि नई आर्थिक नीति संविधान सम्मत नहीं है। मौजूदा सियासी पाखण्ड की एक खूबी यह है कि इक्कीसवीं सदी में देश का जनतंत्र (Democracy) चलाने वाले शासक देश की कमजोर जनता के साथ राजा -प्रजा का रिश्ता कायम कर रहे हैं और आज्ञा पालक समाज निर्मित करने में मशगूल हैं। शासक जमात जिसमें नेता, बुध्दि धर्मी, नौकरशाह और पूंजीपति शामिल हैं, की नेटवर्किंग (Networking) जबरदस्त और मुकम्मल होती जा रही है।           मौजूदा सियासत में सियासी संवाद का काफी अवमूल्यन हो चुका है जो अभी जारी है।यह चिन्ता जनक तो है ही। लेकिन इस गिरावट पर काबू करने का प्रभावी उपाय है कि समाज के समझदार व बुद्धिजीवी वर्ग भाषा का अवमूल्यन न होने देने की अपनी भूमिका पर अडिग रहें। समाज और संस्कृति के प्रति यह उनकी ज़िम्मेदारी है जो सियासी नुमाइंदों से बड़ी है।         सार्वजनिक या निजी जीवन में सत्य और न्याय के रास्ते पर चलकर विफल होना, असत्य और अन्याय के रास्ते पर चलकर सफल होने से लाख गुना बेहतर है। मौजूदा दौर में ऐसे मूल्य की उम्मीद करना मुश्किल होता जा रहा है। बाजारवादी अर्थ नीति अपने मुनाफे को उत्तरोत्तर विस्तार देने के वास्ते समाज के भीतर के नैतिक व मानवीय मूल्यों पर प्रहार करते हुए उसे हास्यास्पद साबित करने की नाकाम कोशिश करती रही है और कथित विकास की रफ़्तार में उसे गति अवरोधक(Speed Breaker) के तौर पर दर्शाने का माहौल बनाती रही है। मुनाफा बढ़ाने के खेल में मज़हब की अहम भूमिका है। मुनाफा के खेल और जीवन से जुड़ी बुनियादी मसलों पर लोगों की निगाह न पड़े, इसके लिए धर्म, बाजार और सरकार के समामेलन से निर्मित पाखण्ड का प्रभामण्डल इस क़दर खड़ा किया जाने लगा है जैसे जीवन को खुशहाल बनाने का यही एकमात्र सहज उपाय (Remedy)है। मज़हब और सियासत का नापाक रिश्ता सियासी तौर पर समाज को रूढ़ी, अंधविश्वास, वैमनस्यता, अवैज्ञानिक और प्रतिगामी दिशा में मोड़कर देश को अंधेरी कोठरी में तब्दील करने पर आमादा नज़र आती है।जो सियासत अतीत के मूल्यों की जरूरत से ज्यादा बखान करने और वर्तमान मूल्यों के प्रति लोगों में घृणा पैदा करने का काम रही हो उसके भविष्य का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।                    मज़हब का ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ता प्रभुत्व (Supermacy) समाज के भीतर विभ्रम पैदा करता है जो वास्तविक समस्याओं (real issues) का कल्पित समाधान प्रस्तुत कर आम जन को वास्तविक समाधान की ओर उन्मुख नहीं होने देता है। आज पढ़े - लिखे युवाओं के समक्ष दो विकल्प हैं --लोकप्रिय धर्म और सत्ता की लोकप्रिय राजनीति। समकालीन दौर में लोकप्रिय धर्म और लोकप्रिय राजनीति में कोई अन्तर्विरोध नहीं है। इसलिए सत्ता और सियासत की आलोचना को धर्म की आलोचना साबित करने की कोशिश राजनीति में हो रही है। मज़हब और सियासत के नापाक रिश्तों की निगरानी में प्रौद्योगिकी आधारित पूंजीवाद ने दुनिया को स्वर्ग सदृश सुखमय बनाने का सपना दिखाया है और इसी की आड़ में पूंजीवाद संसाधनों पर एकाधिकार कायम करके असीमित मुनाफा बनाता रहा है और करोड़ों लोगों को उनके जायज हक़ व हिस्से के संसाधनों से वंचित किया है। संसाधन और पूंजी की मिश्रित चमक - दमक का आडम्बर नुमाइशी विकास होने का भ्रम पैदा करता रहा। इसका भी असर समाज पर स्पष्ट दिख रहा है।असल में यह विकास नहीं विभ्रम है और यह सुकून तो देता है लेकिन यह विकास समाज के भीतर व्याप्त मूल समस्याओं का समाधान नहीं दे सकता है। विकास की इस विभ्रम की आलोचना अन्ततः उस नई आर्थिक नीतियों की आलोचना होगी जो इसकी पोषक है और जिसके माथे पर सत्ता व सियासत का हाथ है।नवउपनिवेशवाद को विस्तार देने में समकालीन अर्थ नीति या नवउदारवादी आर्थिक नीति की अहम भूमिका रही है। इसका सबसे भयावह असर समाज का उपभोक्ता करण होना है और उसे गैर उत्पादक बनाना है ।                मानसिक तौर पर वयस्क हुए बिना न इस विभ्रम से मुक्ति मिलेगी न मूल समस्याओं का युक्तियुक्त (Reasonable) समाधान हाथ लगेगा। इसलिए मौजूदा विकास के विभ्रम को तोड़ने, सियासत को जनतांत्रिक बनाने और समाज की सामान्य समझ को समृद्ध करने के वास्ते जिम्मेदार व समझदार और विवेकशील लोगों को आगे आकर साझा प्रयास करना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

नगर पालिका क्षेत्र के बाहर हुए शहरीकरण तक स्ट्रीट लाइट लगाने संबंधी कार्य पूर्ण हुआ

                                           विषय - पूर्वांचल उद्योग व्यापार मंडल द्वारा व्यापार बंधु की मीटिंग में शामिल कराए गए एजेण्डा नगर पालिका क्षेत्र के बाहर हुए शहरीकरण तक स्ट्रीट लाइट लगाने संबंधी कार्य पूर्ण होना बताते चले की व्यापार बंधु की होने वाली मीटिंग में जिलाधिकारी महोदय की अध्यक्षता में पूर्वांचल उद्योग व्यापार मंडल के जिला अध्यक्ष मंजय सिंह द्वारा यह मांग किया गया था की बलिया शहर नगर पालिका क्षेत्र के बाहर भी शहरीकरण बहुत दूरी तक फैल चुका है इसलिए नगर पालिका क्षेत्र के बाहर जो बलिया शहर को हर सड़क जोड़ता है व्यापारियों की सुविधा को देखते हुए आमजन की सुविधा को देखते हुए स्ट्रीट लाइट लगाना बेहद जरूरी है जिसको जिलाधिकारी महोदय ने आदेशित किया हनुमानगंज और दुबहड ब्लॉक के वीडियो को कि आप इस कार्य को जल्द से जल्द पर करने के लिए वह कार्य आज धरातल पर पूर्ण हुआ है जिसमें गरवआर रोड में सात जगह स्ट्रीट सोलर लाइट लगाया गया जो की लाइट से नहीं सोलर से चलेगा यह अपने आप सूर्य की रोशनी में बंद हो जाएगा और रात ढलते ही जल जाएगा इसी इसी क्रम में सिकंदरपुर मार्ग पर भी सात जगह स्ट्रीट लाइट

बागी बलिया ने दिया श्री राष्ट्रीय करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवगंत श्री सुखदेव सिंह गोगामेडी को श्रद्धांजलि

बागी बलिया में भी करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेडी को श्रद्धांजलि अर्पित किया गया  जिनकी हत्या पाँच दिसम्बर को उनके घर में घुसकर तीन पेशेवर हत्यारों ने गोलियों से छलनी कर दिया था । यह ख़बर जैसे ही मीडिया में आईं उनके समर्थकों ने राजस्थान से लेकर राँची तक दिल्ली से लेकर कलकत्ता और मुम्बई तक विरोध प्रदर्शन किया । राजस्थान छ दिसम्बर को बंद रहा । श्री सुखदेव सिंह गोगामेडी जी सर्व समाज के सामाजिक नेता थे  हिन्दू सनातन धर्म के सम्मान में हमेशा लगें रहते थे विशेषकर राजपूताने के शान थे,  क्षत्रिय समाज को मजबूत करने के लिये राजनीतिक दलों से टकराते रहते थे । जब भी भारतीय    इतिहास या देवी देवता  से छेड़छाड़ होती थी तब तब करणी सेना उसका विरोध पूरे देश में करती थी । जोद्धाअकबर और पदमावत फिल्म का जोरदार विरोध पूरे देश में करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने किया था,  हर व्यक्ति का भला हो सके इसी मनसूबे से राजस्थान के साथ-साथ पूरे देश में  काम करते थे । बलिया नगर में श्रद्धांजलि देने के लिए सुखदेव सिंह गोगामेडी के मित्र और संघटन सहयोगी श्री संतोष प्रताप सिंह सहतवार कोठी बलिया के माल

बलिया में करणी सेना ने मनाई वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की 484 जयंती

  महाराणा प्रताप जयंती 2024: तिथि, इतिहास, महत्व और उत्सव 9 जून को मनाई जाने वाली महाराणा प्रताप जयंती 2024, राजस्थान के मेवाड़ के श्रद्धेय राजा की जयंती के रूप में मनाई जाती है। 9 जून  को  मनाई जाने वाली  महाराणा प्रताप जयंती 2024 ,  राजस्थान के मेवाड़ के  श्रद्धेय राजा की जयंती के रूप में मनाई जाती है  ।  9 जून, 1540 (हिंदू कैलेंडर के अनुसार  ) को जन्मे ,  मुगल सम्राट अकबर के  खिलाफ  हल्दीघाटी की लड़ाई  के दौरान महाराणा प्रताप की वीरता और नेतृत्व का  जश्न मनाया जाता है। अपने लोगों के प्रति साहस और समर्पण की उनकी विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती है, भारतीय इतिहास में उनकी अदम्य भावना और योगदान का सम्मान करते हुए पूरे राजस्थान में उत्सव मनाए जाते हैं। महाराणा प्रताप जयंती 2024 - तिथि महान राजा की जयंती के रूप में मनाई जाने वाली  महाराणा प्रताप जयंती  , हिंदू कैलेंडर के अनुसार  , इस वर्ष 9 जून को पड़ती है  । जबकि ऐतिहासिक रूप से,  महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को हुआ था  , जूलियन कैलेंडर के अनुसार, ग्रेगोरियन कैलेंडर में परिवर्तन के कारण उनकी जन्मतिथि 19 मई, 1540 हो गई। हालाँकि, आधुन