घोसी( उत्तर प्रदेश)उप चुनाव- बदलते सामाजिक समीकरण का संकेत।
त्वरित टिप्पणी।
3:00 बजे के आसपास टिप्पणी लिखे जाते समय तक घोसी में सपा के प्रत्याशी को निर्णायक बढ़त मिल चुकी है। तीन बजे तक मिली जानकारी के अनुसार सपा प्रत्याशी 45हजार के अन्तर से आगे हैं । वैसे पहले से ही यह अनुमान लगाए जा रहे थे कि सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान पर भारी पड़ेंगे।लेकिन चुनाव परिणाम ने सारे राजनीतिक विश्लेषको के आंकलन को गड़बड़ा दिया है। जिस तरह सत्ता पक्ष और विपक्ष ने पूरी ताकत झोंक दी थी। उससे यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अंतिम लड़ाई कांटे की होगी ।
घोसी विधानसभा अतीत में एक विशेष तरह की विधानसभा रही है जिसे कभी उत्तर प्रदेश का केरल कहा जाता था। अब यह बीते जमाने की बातें हैं। 90 के दशक के बाद बदली हुई भारत की सामाजिक राजनीतिक स्थितियों से घोसी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। जिस कारण कम्युनिस्ट पार्टी धीरे-धीरे हासिए पर चली गईऔरबसपा ने सोशल इंजीनियरिंग द्वारा दलितों अतिपिछड़ों अल्पसंख्यकों का समीकरण बनाकर घोसी सहित मऊ जनपद पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।
कांग्रेस नेता कल्पना राय के निधन के बाद मऊ में कोई ऐसा प्रभावशाली व्यक्तित्व नहीं था जो मऊ की राजनीति को प्रभावित कर सके। इस राजनीतिक खालीपन का फायदा उठाते हुए गाजीपुर से आकर अंसारी परिवार ने मऊ को अपना केंद्र बनाया। अंसारी परिवार की पृष्ठभूमि कम्युनिस्ट राजनीति की रही है।इसलिए मऊ में उन्हें आसानी से स्वीकृति मिल गई ।लेकिन मऊ शहर से बाहर घोसी और दूसरी विधानसभाओं पर उनका खास असर नहीं रहा।
बसपा ने मऊ की राजनीति में नए तरह का समीकरण बैठाया। जिसमें चौहान निषाद दलित राजभर और मुस्लिम समाज का समीकरण बनाकर बसपा ने कई बार घोसी लोकसभा का चुनाव जीत कर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।वर्तमान समय में भी बसपा से ही जीते हुए सांसद अतुल राय घोषी लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
बाद के दिनों में जैसे-जैसे राजनीति में बाहुबल धनबल और जाति बल का वर्चस्व बढ़ता गया। बसपा में ऐसे उम्मीदवार आने लगे जो संसाधनों से संपन्न थे ।इसलिए आजमगढ़ से आए हुए फागू चौहान ने घोसी विधानसभाऔर दारा सिंह चौहान ने मऊ लोकसभा सीटों पर अपनी पकड़ बना ली।
लेकिन जैसे-जैसे आक्रामक हिंदुत्व का प्रभाव बढ़ने लगा वैसे वैसे अति पिछड़ी जातियां भाजपा और संघ के दायरे में खिंचती गयी। समय की गति को भापते हुए फागू चौहान और दारा सिंह दोनों भाजपा में चले गए।बसपा का समीकरण बिखरने लगा ।मऊ कोपा घोसी मोहम्मदाबाद गोहना कस्बे बुनकर बहुल इलाके हैं। इसलिए मुस्लिम विरोधी अभियान को केंद्रित करते हुएभाजपा ने अति पिछड़ी जातियों के साथ सवर्णो को भी गोलबंद कर लिया और मऊ जनपद पर भाजपा का वर्चस्व दिखने लगा।
2017 में भाजपा ने मऊ की लोकसभा सीट सहित कई विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी ।लेकिन 22 के विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान भाजपा छोड़कर सपा में आ गए और घोसी सीट से चुनाव जीत गए। लंबे समय से सत्ता के इर्द-गिर्द चक्रमण करने वाले दारा चौहान बहुत दिनों तक विपक्ष में नहीं रह सके और वे विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में आगए।उनके त्यागपत्र के बाद घोसी सीट खाली हो गई ।जिसके चुनाव परिणाम इस समय आ रहे हैं।
इस बार सपा ने पूर्व विधायक सुधाकर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया और इंडिया का उन्हें पूरा समर्थन मिला। कांग्रेस सीपीआई सीपीएम भाकपामाले और ओमप्रकाश राजभर से टूटे हुए महेंद्र राजभर सपा के साथ मजबूती से खड़ा रहे और चुनाव अभियान में सक्रिय भूमिका में उतरे। घोसी विधानसभा चुनाव में इंडिया का सशक्त गठबंधन स्पष्ट दिखाई दे रहा था। जिसने चुनाव के वातावरण को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भाजपा में शामिल एनडीए के अन्य दलों का कोई खासअस्तित्व न होने के कारण वह मुख्यत: अपने परंपरागत जन आधार सवर्ण जातियों के साथ चौहान निषाद तथा ओमप्रकाश राजभर की पार्टी पर आश्रित होती चली गई। दूसरा सकारात्मक पक्ष यह है किभाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में है। उसके पास एक आक्रामक व्यक्तित्व वाला मुख्यमंत्री है। कुछ इलाकों में क्षत्रिय भूमिहार और ब्राह्मण जैसी सवर्ण जातियां ताकतवर हैं। ।इसलिए भाजपा ने इन जातियों को अपने साथ बनाए रखने की हरसंभव कोशिश की।लेकिन दारा सिंह चौहान के बार-बार दल बदल करने और डेढ़ साल के अंदर ही इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने से उनकी साख बहुत गिर गई थी। जिस कारण इन जातियों ने दारा सिंह चौहान के खिलाफ लगभग विद्रोह कर दिया।
सूचना के अनुसार यूपी के40 मंत्री और कई केंद्रीय मंत्री घोसी में डेरा डाले रहे।योगी आदित्यनाथ के आक्रामक नफरती तेवर के बावजूद क्षत्रिय जाति ने भाजपा का साथ नहीं दिया।इसके अलावा बार-बार दल बदल करने वाले पिछड़ी जातियों के नेता घोसी का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। जिससे भूमिहार सहित सवर्ण जातियों में असंतोष दिखाई दिया । जबकि पूर्वांचल में अभी तक भूमिहार कट्टरता के साथ भाजपा के साथ खड़ा रहाहै ।लेकिन घोषीमें उसका बहुमत सपा के पक्ष में चला गया। इस बार भाजपा की हार का एक बड़ा कारण क्षत्रिय और भूमिहारों का बिखरना भी है ।
बसपा ने अपने वोटर से कहा था कि या तो वोट न दे और देने जाए तो नोटा पर बटन दबाए । 15 अगस्त के बाद पूरे देश में यह संदेश गया है कि मोदी सरकार संविधान को बदलना चाहती है ।जिस कारण से दलित समाज भाजपा से नाराज हो गया था और उसके अंदर इंडिया के प्रति रुझान दिखाईदेने लगा । इंडिया गठबंधन के पूर्ण समर्थन के कारण दलितों का भारी बहुमत सपा के पक्ष में चला गया। क्योंकि संविधान बदलने की बात आते ही गरीब से गरीब दलित परिवारों में यह धारणा बन गई कि यह सरकार बाबा साहब द्वारा बनाए गए संविधान को खत्म करने पर आमादा है। दलितों में गया यह संदेह आने वाले समय में राजनीति की नई दिशा की शुरुआत कर सकता है। दलितों के पढ़े लिखे नौजवान और कर्मचारी तथा सेवानिवृत अधिकारियों का बड़ा योगदान इस नैरेटिव को बनाने में है। घोसी विधानसभा में वोट की संख्या के आधार पर दूसरे नंबर पर रहने वाला दलित समाज बड़ी संख्या में सपा के पक्ष में वोट किया। जो उसके स्वभाव के विपरीत था ।
महंगाई बेरोजगारी नफरत तथा हिंसा की भाजपाई राजनीति से आमजन अब परेशानी महसूस करने लगा है। जिस कारण जाति धर्म कीसीमाऐं कमजोर होती दिखाई दी। ये प्रश्न सामाजिक और आर्थिक सवालों से उठकर राजनीतिक दिशाएं लेने लगे हैं। शिक्षा स्वास्थ्य बेरोजगारी जैसे सवाल भी अब राजनीतिक आयाम ग्रहण कर रहे हैं। इसलिए इस चुनाव में जन मुद्दों ने भी अपनी भूमिका निभाई। इस बात के लिए सपा और इंडिया गठबंधन को श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद चुनाव को धार्मिक आधार पर विभाजित नहीं होने दिया। गठबंधन ने जनता के मुद्दे को ही चुनाव का एजेंडा बनाए रखा।
इस बार की खासियत यह थी कि जिन इलाकों में राजभर चौहान निषाद जातियां बहुमत में थी ।वहां भी भाजपा को भारी हार का सामना करना पड़ा है। घोसी विधानसभा के पश्चिमी इलाके बोझी से लेकर नदवा सराय और कोपागंज के बीच का इलाका भाजपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था ।वहां लगभग सभी पोलिंग बूथ पर एनडीए की हुई।
ओमप्रकाश राजभर की अवसरवादी राजनीति और दारा सिंह चौहान का दल बादल का फैक्टर भी इस चुनाव में जनता के लिए एक बड़ा मुद्दा था।साथ ही उम्मीदवार का चरित्र और ब्यौहार भी गरीब जनता के बीच में आक्रोश का कारण बना ।क्योंकि चुनाव जीतने के बाद दारा सिंह चौहान खुद अपने जाति आधार को भी कोई तरजीह नहीं देते ।चौहानों में जगह-जगह से आवाज उठती दिखाई दी कि वह जिनका काम करते हैं ।जाकर उन्हीं से वोट मांगें। इसलिए निषाद चौहान और राजभर में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं था।
पूर्वांचल की घोसी सीट का चुनावइंडिया के लिए लिटमस टेस्ट था। इस सीट की सामाजिक संरचना बहुत जटिल है और कई तरह की विशेषताएं लिए हुए है। इसलिए घोषी में सपा और इंडिया गठबंधन की जीत आने वाले समय में उत्तर भारत के राजनीति पर गहरा असर डालेगी।
सपा द्वारा सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद चुनाव के शुरुआत से ही भाजपा पिछड़ती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन किसी भी कोण से ऐसा नहीं लगता था कि भाजपा इतने बड़े पराजय की तरफ जा रही है। इससे यह स्पष्ट है कि उत्तर भारत के समाज में नई तरह की वैचारिक राजनीतिक अंतः क्रियाएं चल रही हैं ।जो इंडिया गठबंधन बनने के बाद अब एक निश्चित दिशा और आकर लेने लगी है। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर सर्वथा नए तरह के दृश्य और समीकरण दिखाई देंगे ।
जयप्रकाश नारायण।
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