यूनीफाईड पेंशन स्कीम धोखा है-
भावी विधानसभा चुनावों में लाभ उठाने के उद्देश्य से मामा मारीच की तरह नकली स्वर्ण मृग गड़ा है सरकार ने।
कर्मचारी मांग रहे थे ओल्ड पेंशन, सरकार ने थमा दी यूपीएस
डा. गिरीश
पुरानी पेंशन की समाप्ति के बाद से ही उसकी बहाली को लेकर देश के सरकारी कर्मचारी आंदोलनरत रहे हैं। लेकिन अचानक शनिवार को मोदी सरकार पुरानी पेंशन का एक और नया रूप लेकर सामने आ गयी। लोकसभा चुनावों में भाजपा को लगे तगड़े झटके के बाद से मोदी सरकार और भाजपा अपने पुराने अड़ियल चेहरे को डेंट पेंट करने में जुटी है। हाल में वक्फ बिल को जेपीसी में भेजा जाना और अधिकारियों की सीधी भर्ती के कदम को पीछे खींचना इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। सच तो यह है कि कई राज्यों में होने जारहे विधान सभा चुनावों और उत्तर प्रदेश आदि में होने वाले उपचुनावों को फेस करने में भाजपा को पसीने छूट रहे हैं।
यूनीफाईड पेंशन स्कीम की घोषणा भी इसी श्रृंखला का अगला कदम मानी जा रही है। हालांकि इसके बारे में पिछले कई दिनों से चर्चा चल रही थी। लेकिन जिस रूप में इसका ऐलान हुआ है, उससे कई गंभीर सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। बताया यह जा रहा है कि इसको देश के सारे राज्य लागू करेंगे। पर इसके लिए राज्यों को भारी भरकम बजट चाहिए, जिसको जुटा पाना उनके लिए असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
यद्यपि गोदी मीडिया ने इसकी तारीफ मैं कसीदे पढ़ने शुरू कर दिये हैं लेकिन इसको लेकर कर्मचारी संगठनों में भी भारी रोष व्याप्त है। ये कथित नयी पेंशन स्कीम उनको मंजूर नहीं है। अतएव वे ओपीएस को लेकर आंदोलन अवश्य जारी रखेंगे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने वाले ''नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के राष्ट्रीय नेतृत्व का कहना है कि सरकार ने यूपीएस लाकर कर्मचारियों के साथ छल किया है। इसे वे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
भाजपा सरकार पुरानी बोतल में नई शराब पेश करने में माहिर है। अतएव इस स्कीम को भी नया नाम दे दिया गया है। नई स्कीम का नाम यूनिफाइड पेंशन स्कीम 'यूपीएस' रखा गया है। केंद्रीय कैबिनेट ने इस स्कीम को मंजूरी भी दे दी और घोषणा भी कर दी है।
केन्द्र के अनुसार इस स्कीम में 25 साल काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को पूरी पेंशन मिलेगी। यानी किसी कर्मचारी ने न्यूनतम 25 साल तक नौकरी की है तो उसे सेवानिवृत्ति के तुरंत पहले के अंतिम 12 महीने के औसत वेतन का कम से कम 50 प्रतिशत भाग पेंशन के रूप में मिलेगा। दूसरी तरफ यूनिफाइड पेंशन स्कीम में 10 साल की नौकरी करने के बाद कर्मचारी को कम से कम 10 हजार रुपये पेंशन के तौर पर मिलेंगे।
इसी को लेकर केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने इस स्कीम- 'यूपीएस' पर गहरी नाराजगी जताई है। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सरकार ने कर्मचारी वर्ग के साथ छल किया है अतएव इसे किसी भी सूरत में मंजूर नहीं किया जायेगा। वे गारंटीकृत 'पुरानी पेंशन बहाली' के लिए दोबारा से हल्लाबोल की तैयारी में जुट गए हैं। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्यों के कर्मचारी संगठन, जो ओपीएस के लिए आंदोलन कर रहे थे, वे जल्द ही अपनी आगामी रणनीति का खुलासा करने वाले हैं।
दरअसल कर्मचारी आंदोलन करने की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यूपीएस में सरकार ने अपना कंट्रीब्यूशन, जो अभी तक 14 प्रतिशत था, उसे बढ़ाकर 18.5 प्रतिशत कर दिया है। यहां तो सब ठीक है। लेकिन पुरानी पेंशन रिटायरमेंट पर 50 प्रतिशत बेसिक सेलरी और डीए अलाउंस के बराबर की थी, न कि कंट्रीब्यूशन घटाने या उसे बढ़ाने की।
कर्मचारियों की डिमांड रही है कि सेवानिवृत्ति के बाद उनका पैसा, बिल्कुल जीपीएफ की तरह ही उनको वापस कर दिया जाए। नई व्यवस्था 'यूपीएस' में सरकार वह सारा पैसा ले लेगी। यानी कर्मचारियों का 10 प्रतिशत भी और खुद का 18.5 प्रतिशत भी। लिहाजा अपने वाले कंट्रीब्यूशन में से केवल आखिरी के 6 महीना की सैलरी जितनी बनेगी, सरकार उतना ही कर्मचारियों को वापस करेगी। ऐसी स्थिति में तो यूपीएस की तुलना में एनपीएस ज्यादा अच्छा रहेगा।
कर्मचारियों काआंदोलन ओपीएस के लिए था, परन्तु सरकार ने पुरानी पेंशन जैसा कोई भी प्रावधान यूपीएस में शामिल नहीं किया है, इसलिए कर्मचारी अपना आंदोलन जारी रखने की बात कर रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसे कर्मचारियों के हितैषी दल जो अब तक भी उनके साथ खड़े थे आगे भी उनके साथ खड़े रहने की प्रतिबध्दता जता रहे हैं।
सरकार ने ओपीएस को लेकर कोई भी सकारात्मक बयान नहीं दिया । सरकार अपनी बात पर ही अड़ी रही। सरकार ने ओपीएस पर आंदोलन करने वाले कर्मचारी संगठनों की राय लेने के बजाय कुछ पिट्ठू संगठनों से वार्ता का नाटक रचा और यूपीएस को लागू करने की घोषणा कर दी। अतएव कर्मचारी संगठन आंदोलन करने को उद्यत हैं। उनका तर्क है कि यदि सरकार एनपीएस से यूपीएस का विकल्प दे सकती है तो फिर ओपीएस का विकल्प देने में उसे क्या दिक्कत है। यदि सरकार यूपीएस मे बेसिक वेतन का 50 प्रतिशत दे सकती है तो ओपीएस मे भी 50 प्रतिशत ही तो देना होता है। नाम बदलने से स्कीम नहीं बदल गयी।
यह जितनी भी योजनाएं लाई जा रही हैं, सभी स्कीम ही तो हैं। तभी तो उन्हें रोज रोज बदलाव करना पड़ रहा है। अभी तक एनपीएस की तारीफ की जा रही थी तो अब यूपीएस की। जबकि सच तो यह है कि ओपीएस ही सामाजिक सुरक्षा का आवश्यक कवच है। वही बुढ़ापे की लाठी है। इसीलिए देश के करोड़ों कर्मचारी ओपीएस की ही मांग कर रहे हैं। भावी विधानसभा चुनावों में लाभ उठाने की गरज से घोषित इस योजना का कोई लाभ भाजपा को मिलने नहीं जा रहा है।
कर्मचारी संगठन इसे रावण के आग्रह पर मामा मारीच द्वारा गड़े गये नकली स्वर्ण मृग के रूप में ही देख रहे हैं, और इस मृग अन्त सुनिश्चित है।
डा. गिरीश।
*केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम को मंजूरी दी:*
23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा, एक अप्रैल 2025 से लागू होगी
केन्द्र सरकार न्यू पेंशन स्कीम (NPS) की जगह अब केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) लेकर आई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार, 24 अगस्त को इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैबिनेट बैठक में इसे मंजूरी दी गई। UPS एक अप्रैल 2025 से लागू होगी।
UPS से 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा। कर्मचारियों के पास UPS या NPS में से कोई भी पेंशन स्कीम चुनने का ऑप्शन रहेगा। राज्य सरकार चाहें तो वे भी इसे अपना सकती हैं। अगर राज्य के कर्मचारी शामिल होते हैं, तो करीब 90 लाख कर्मचारियों को इससे फायदा होगा
*न्यू पेंशन स्कीम से कैसे अलग है UPS*
न्यू पेंशन स्कीम में कर्मचारी को अपनी बेसिक सैलरी का 10% हिस्सा कॉन्ट्रिब्यूट करना होता है और सरकार 14% देती है। अब सरकार अपनी तरफ से कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 18.5 % कॉन्ट्रिब्यूट करेगी। कर्मचारी के 10% हिस्से में कोई बदलाव नहीं होगा।
टीवी सोमनाथन ने बताया कि NPS के तहत 2004 से अब तक रिटायर हो चुके और अब से मार्च, 2025 तक रिटायर होने वाले कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिलेगा। जो पैसा उन्हें पहले मिल चुका है या वे फंड से निकाल चुके हैं, उससे एडजस्ट करने के बाद भुगतान किया जाएगा।
सरकार की तरफ से कॉन्ट्रिब्यूशन 14% से 18.5% बढ़ाए जाने पर पहले साल 6250 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा। ये खर्च साल दर साल बढ़ता रहेगा।
Comments
Post a Comment