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चन्द्रशेखर जयंती के अवसर पर विशेष रूप से उनके समाजवादी विचारधारा ही उनकी पहचान

आज चन्द्रशेखर का जन्म दिवस है।गौरव का दिन है। उनकी स्मृतियों का स्मरण करने और उनके कृतित्व को समझने का मौका है। युवा तुर्क अगर वे थे तो इस कारण कि उन्होंने असहमति में उठी आवाज़ की पहचान प्रयासपूर्वक प्राप्त की थी। उनकी सियासी यात्रा इसी बुनियाद पर विकसित होती गयी। चन्द्रशेखर इस मान्यता के रहे कि अतीत में संसद जनाकांक्षा को प्रतिबिंबित करने का मंच हुआ करती थी और सांसदगण सदन में और उसके केन्द्रीय कक्ष में भी, लोगों की न्यूनतम आवश्यकताओं पर केन्द्रित रहते थे। आज यह सब अतीत का अंग बनकर रह गया है। आज केवल भावुक मसलों पर ध्यान दिया जाता है जिनके जरिए लोगों की संवेदनाओं का दोहन किया जा सके। चन्द्रशेखर की चिन्ता वाजिब प्रतीत होती है। उनके मुताबिक मौजूदा सियासी दौर में संसद की मर्यादा गिरावट की ऊंचाई को स्पर्श करने को बेताब दिख रही है।

                 समाजवादी विचारधारा के बावत प्रतिबद्ध चन्द्रशेखर वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक मार्क्स पर संसद में बोलते हुए कहा कि मार्क्स ने सरकार नहीं बनायी थी, मार्क्स ने मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति की थी, इन्सान के जज्बातों की बातें की थीं।जब -जब शोषण होगा, गरीबी रहेगी,भूख रहेगी।जब तक आदमी, आदमी का दोहन करता रहेगा,तब तक मार्क्स का सिद्धांत अमर रहेगा। उन्होंने कहा कि समाजवाद एक शाश्वत सिध्दांत है। समाजवाद मानव मर्यादा का सिद्धांत है, समाजवाद आदमी को एक जीवन शक्ति देने का सिद्धांत है, नई जीवन विधा है। समकालीन सियासत पर तंज़ कसते हुए चन्द्रशेखर ने कहा कि 'दिनकर ' ने कहा था कि जब लड़ाई होती है तो जो लड़ाई में हिस्सा लेता है वही दोषी नहीं है,जो अन्याय के पक्ष में चुप रह जाता है, वह भी उतना ही बड़ा दोषी है।

            चन्द्रशेखर नई अर्थ नीति का प्रबल मुखालिफत करते रहे और इसे देश के लिए घातक बताते रहे । बावजूद इसके मौजूदा इश्तहारी सत्ता और सियासत नई उदारवादी आर्थिक नीतियों की बदौलत देश की किस्मत बदलने का खोखला दावा करती रही है। समकालीन सियासत और सत्ता की शक्ति का स्रोत दो सियासी मुद्दे दिख रहे हैं - देशद्रोह और भ्रष्टाचार। मौजूदा सत्ता दोनों मोर्चों पर बेनकाब साबित होती दिख रही है। इश्तहारी सियासत का राष्ट्र प्रेम और भ्रष्टाचार विरोधी होना संदिग्ध प्रतीत हो रहा है।

           चन्द्रशेखर का कहना है कि सत्ता की राजनीति इसी तरह चलती रही तो संसदीय संस्थाएं शीघ्र ही अपनी प्रासंगिकता खो देंगी। चन्द्रशेखर की यह चिंता गम्भीर है।ऐसी सूरत में मौजूदा सियासी दौर में जहां समाज के भीतर नफरत और विभाजन व फिरकापरस्ती सियासत का हालात बरकरार हो तो चन्द्रशेखर की प्रासंगिकता मौजूॅ है।

चन्द्रशेखर की स्मृतियों को सलाम।

चन्द्रशेखर जयंती पर विशेष।

बलिया पियूसीयल ,Pucl 


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