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राजनीति में शिष्टाचार के शिखर पुरूष थे युवा तुर्क चन्द्रशेखर-

 राजनीति में शिष्टाचार के शिखर  पुरूष थे युवा तुर्क चन्द्रशेखर-



 साहित्यकारों, क्रांतिकारियों और सच्चाई, ईमान और इरादों के लिए बगावत का तेवर रखने वाले अनगिनत  व्यक्तित्वों के लिए राष्ट्रीय फलक पर विख्यात बागी बलिया की धरती पर इब्राहीम पट्टी गाँव में एक साधारण किसान परिवार में पैदा हुए चंद्रशेखर ने अपने पुरुषार्थ, पराक्रम,और राजनीतिक कौशल से राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफ़र तय किया। अपने सिद्धांतों, विचारों और ऊसूलो के लिए सत्ता के शीर्षस्थ चौखट से टकराने का साहस रखने वाले चन्दशेखर ने श्री रामधन, मोहन धारिया और कृष्णकांत  इत्यादि युवा नेताओं के साथ मिलकर अपनी ही सरकार के समक्ष राजाओं तथा नवाबों को मिलने वाले प्रीवीपर्स की समाप्ति एवं बैंकों के राष्ट्रीयकरण की मुखरता से माॅग किया। इस तरह के क्रांतिकारी बदलावो की माॅग करने के कारण चन्दशेखर और उनकी युवा मंडली को भारतीय राजनीति में युवा तुर्को के रूप में जाना जाता है। आधुनिक तुर्की के निर्माता अतातुर्क कमालपाशा ने भी तुर्की में प्रचलित खलीफा आधारित व्यवस्था को समाप्त कर तुर्की को आधुनिक बनाने के लिए अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किये। भारतीय राजनीति में अतातुर्क कमालपाशा के नाम से विख्यात श्री चंद्रशेखर कुशल राजनेता के साथ- साथ सुकरात , गैरैलियों और  कांपरनिकस की परंपरा के अपने सच के लिए जहर पीने का दमखम रखने  वाले एक उत्कट राजनीतिक  दार्शनिक, विचारक तथा सिद्धांतकार भी थे । अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में चंद्रशेखर ने अपने वसूलो, सिद्धांतों के लिये अनगिनत बार जहर पिया और इसीलिए कभी-कभी  अलग-थलग भी पड गये । अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता, दूरगामी सोच तथा राजनीतिक सच्चाईयों को अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने  कभी भीड़ और राजनीतिक नफा-नुकसान का परवाह नहीं किया। चन्द्रशेखर ने अपनी राजनीतिक हैसियत बढाने के लिए कभी भावनाओं और जज्बातो के साथ खिलवाड़ नहीं किया और न तो वह  भावनाओं और जज्बातो के प्रवाह में बहकाव के शिकार हुए। भले ही राजनीति के कुरूक्षेत्र में उन्हे अकेले संघर्ष करना पडा। चंद्रशेखर तन, मन , परिधान और विचारधारा की दृष्टि से विशुद्ध गांधीवादी थे । चन्द्रशेखर ने राजनीति विज्ञान में परास्नातक की शिक्षा प्रयागराज विश्वविद्यालय से ग्रहण की थी परन्तु भारतीय राजनीति की व्यवहारिक राजनीति की दीक्षा आचार्य नरेन्द्र देव से ग्रहण की थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे और आचार्य नरेन्द्र देव की तरह चन्द्रशेखर के अंदर भारतीयता और देशीयपना  कूट-कूट कर भरी थी। प्रधान-मंत्री रहते हुए जब भी विदेश यात्रा पर गए तो तन-बदन पर पूरी तरह स्वदेशी और भारतीयता के रंग में रंगे परिधान लपेट कर उसी तरह गए जैसे महात्मा गाँधी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में बदन पर आधी धोती ओढकर गये। चंद्रशेखर वंश परंपरा की दृष्टि से रघुवंशी थे परन्तु अपने जीते जी कभी वंशवाद को प्रश्रय नहीं दिया ।  चंद्रशेखर जी ने आजीवन बंशवादी, सिद्धांतहीन और विचारहीन राजनीति का पूरी क्षमता से प्रतिरोध किया। चन्द्रशेखर स्वाधीनता उपरांत इकलौते राजनेता थे जिन्होंने दलीय संकीर्णताओ को लात मारकर, राजनीतिक छूऑछूत को पूरी तरह से नकारते हुए अपने रिश्तों-नातो को पूरी ईमानदारी से निभाया। चन्द्रशेखर ने अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में संसदीय शिष्टाचार और संसदीय परम्पराओं का निर्वहन एक अनुशासित विद्यार्थी की तरह किया। इसलिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद सम्मान से सम्मानित किया गया। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

लेखक/ साहित्यकार/ उप सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका।

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