अवैध मुल्क की दास्ताँ
वो एक अवैध मुल्क था।यहाँ किसी भी तरह का अवैध कार्य करना वैध समझा जाता था और लगभग सभी वैध माने जाने वाले कार्य अवैध समझे जाते थे।सरकारी नौकरियों में ऐसे लोगों की बहुतायत थी जिनके पास अवैध डिग्रियाँ थीं।दफ़्तरों में ज़्यादातर कर्मचारी ऐसे थे जो भर्ती के वैध तरीक़ों से नौकरी में नहीं आए बल्कि अवैध तरीक़े से किसी न किसी चोर दरवाज़े से घुसे थे और फिर वैसे ही 'नियमित' कर दिए गए जैसे महानगरों में पहले अवैध बस्तियाँ धीरे-धीरे बसाई जाती हैं और फिर वही बस्तियाँ एक दिन 'नियमित' कर दी जाती थीं।
अवैध मुल्क पूरी तरह धार्मिक था जहाँ कोई गली,मुहल्ला,सड़क,नदी या पहाड़ पर कोई न कोई भगवान या अल्लाह अवैध रूप से क़ब्ज़ा किए बैठा था।ये दुनिया का अकेला मुल्क था जहाँ ज़मीन को ख़रीदे बग़ैर बड़े-बड़े धार्मिक संस्थान खड़े थे।जिनकी ख़ज़ानों में अवैध रूप से जमा किए गए लाखों करोड़ रुपयों की संपत्ति इकट्ठा होती रहती थी।इस अवैध ख़ज़ाने को कुछ अधिकारी और पंडे अवैध रूप से इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र थे।
ये मुल्क लोकतांत्रिक था जिसमें सरकारी आँकड़ों के अनुसार आधे से ज़्यादा लोगों की औसत मासिक आमदनी 4467.50 रुपये थी।संसद का चुनाव लड़ने में औसतन बीस करोड़ रुपये खर्च होते थे और इस 'व्यवस्था' को समान भागीदारी पर आधारित दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताया जाता था।इतनी विसंगतियों के बावजूद यहाँ मनुष्य जैसे दिखने वाले प्राणियों की संख्या दुनियाभर में सबसे ज़्यादा थी।मनुष्य जैसे इसलिए क्योंकि वे मनुष्य या वहाँ की सरकार होने की पहली शर्त यानि मानवीय गरिमा को बिल्कुल महत्व नहीं देते थे।मुल्क की बेशतर आबादी भीख पर ज़िंदा थी।ज़्यादातर लोगों को सरकार भीख में अनाज देती थी।जो रह गए उनमें भी बहुत से सड़कों पर बाक़ायदा कार्पोरेट शैली में भीख माँगते थे।इस मुल्क के मंदिरों और शहरों के चौराहों पर करोड़ों लोग भीख और झपटमारी का पारंपरिक व्यवसाय किया करते थे।इनकी संख्या भी दुनिया के किसी भी दूसरे मुल्क से बहुत बहुत ज़्यादा थी।
यहाँ की बड़ी अदालतों में साक्षात न्यायमूर्ति विराजमान होते थे जिनके भर्ती होने का तरीक़ा बेहद घुमावदार,अस्पष्ट और अपारदर्शी था।ऐसे 'न्यायमूर्तियों' की लंबी सूची थी जिसने परिवार अनेक पीढ़ियों से सर्वोच्च न्यायालय के 'न्यायमूर्ति' होते थे।इन न्यायमूर्तियों में से अनेक ऐसे थे जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के दिन बड़े-बड़े फ़ैसले करके बेतहाशा कमाई और बदनामी पाई।हालाँकि आबादी का बड़ा हिस्सा उनके द्वारा किए गए फ़ैसलों को अवैध मानता रहा।
इस मुल्क में लगभग हर थाने की नीलामी होती थी यानि मुल्क पाँच हज़ार पुरानी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली सनातन परंपरा को जीवित रखे हुआ था।पुलिस द्वारा की जाने वाली अवैध उगाही को वैध और ज़रूरी समझा जाता था।
इस मुल्क की सबसे अच्छी बात यह थी कि किसी भी व्यक्ति को कभी भी 'अवैध',राष्ट्रविरोधी या फिर ग़द्दार कुछ भी बताकर उसे दंडित किया जा सकता था और ऐसा करने के लिए जिन तरीक़ों को इस्तेमाल किया जाता था उन्हें वैध माना जाता था।आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा कोई भी अपराध सिद्ध हुए बिना दशकों तक जेलों में बंद रहता था और फिर बाइज़्ज़त बरी भी कर दिया जाता था।जिन लोगों के पास अदालतों द्वारा जारी किए गए 'बाइज़्ज़त बरी' वाले सर्टिफिकेट नहीं होते थे उन्हें वैध रूप से इज़्ज़तदार नहीं माना जाता था।
मज़ेदार बात यह है कि इन तमाम विसंगतियों के बावजूद मुल्क बड़े ठाठ से चल रहा था।कुछ दानिशवर बताते थे कि यह मुल्क ख़ुद अल्लाह या भगवान चला रहा है।हालाँकि इसमें ऐसे ख़ुदाओं की भी कमी नहीं थी जो ख़ुलेआम अपने 'ख़ुदा' होने का ऐलान करते थे और हर अवैध काम को अपना वैध अधिकार बताते थे।मुल्क में ख़ुदाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही थी।और अब दुनिया भर के मुल्क इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए इसी अवैध मुल्क की तरफ़ देखते थे।अब ये मुल्क ख़ुद को उस्ताद-ए-कायनात या विश्वगुरु होने का दावा भी कर चुका था।_श्रीकांत
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