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भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश

 भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां भारतीयों की समस्त शक्तियां इसी में निहित हैं।यह लोकतंत्र हमें खैरात में नही मिला है बल्कि इसके पीछे हमारे पूर्वजों की असीम कुर्बानियां हैं।पिछले  कुछ वर्षों में हमारे देश में ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं जो लोकतंत्र को कमजोर करती हैं या यूं कहें तो पूर्वजों की असीम कुर्बानियों का उपहास उड़ाती हैं।

जब सरकार और उसकी नीतियां जन विरोधी या राष्ट्र विरोधी हो जाएं तो हमारा संविधान हमें सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ बोलने,लिखने और शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने का अधिकार देता है।जब इन अधिकारों का दमन किया जाने लगे तो समझिए कि लोकतंत्र को कमज़ोर किया जा रहा और संविधान को रौंदा जा रहा है।इस संदर्भ में मैं आपको अतीत में ले जाते हुए CAA के खिलाफ प्रदर्शन और किसान आंदोलन आदि का याद दिलाना चाहूंगा जिसमें अपने ही राष्ट्र की मां बहनों पर लाठियां भांजी गईं और उनके चरित्र के संबंध में आपत्तिजनक टिपणी की गई।संविधान की क़सम लेने वाले मंत्री द्वारा एक समुदाय विशेष के लिए "देश के गद्दारों को गोली मारो....को" जैसा अमर्यादित नारा बोला गया।भारतीय किसानों को देशद्रोही,खालिस्तानी कहा गया।शांतिपूर्वक धरना दे रहे किसानों के धरना स्थलों के चारों तरफ कीलें गाड़ दी गईं।अपने ही देश की माँ-बहनों और किसानों को ये सजाएं सिर्फ इसलिते मिलीं क्योंकि वो संविधान प्रदत्त अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे थे।

गत पंचायत चुनाव में एक महिला जब अपना नामांकन करने जा रही थी तो उसको नामांकन से बलपूर्वक रोका गया,उसके साथ बदतमीजी की गई और उस भारतीय नारी के कपड़े खींचने जैसा घिनौना कार्य किया गया।ऐसा एक नीति के तहत किया गया ताकि सिर्फ एक विशेष पार्टी के 

ही उम्मीदवार विजयी हों।क्या यही लोकतंत्र है?

एक तरफ कुछ विशेष पूजा स्थलों से ध्वनि प्रदूषण के नाम पर लाउडस्पीकर उतारे गए तो दूसरी तरफ माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारत डेसिबल क्षमता से अधिक क्षमता की ध्वनि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में घंटों तक उत्पन्न किया जा रहा है।क्या यही न्यायालय का सम्मान और धर्मनिरपेक्षता है?

निष्पक्ष मतदान लोकतंत्र के सफलता की एक आवश्यक कसौटी है।विडंबना देखिए कि चुनाव आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने की बात कह रहा और सरकार उत्तर प्रदेश की एक विशेष सीट पर हुए उपचुनाव में मात्र 34% मतदान योग्य वातावरण बना पाती है।शिकायत प्राप्त होती है वोट डालने से जबरदस्ती रोका गया।कहीं भारी संख्या में EVM होटलों से बरामद हो रही तो कहीं विपक्षी प्रत्याशी का पर्चा वापसी के लिए फर्जी महिला को खड़ा किया जा रहा।किसी को नफरती भाषण देने के आरोप में जेल भेजा जा रहा है तो किसी को समान आरोप में माला पहनाया जा रहा है।क्या यही सभी नागरिकों के लिए समान कानून है?

संक्षेप में कहें तो 'लोकतांत्रिक भारत' में एक ऐसे "अलोकतांत्रिक भारत" का उदय दिख रहा जिसमें संविधान प्रदत्त शक्तियों/अधिकारों का गला घोंट जा रहा,वोट के अधिकार का दमन किया जा रहा,चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से रोका जा रहा,एक धर्म विशेष की मान्यताओं को पुष्ट किया जा रहा और अन्य धर्मों की मान्यताओं को तुच्छ किया जा रहा।ऐसे भारत का उभार चिंतनीय है।

इन समस्यायों और दुर्व्यवस्थाओं से अपने राष्ट्र को निजात दिलाने के लिए बुद्धजीवियों को आगे आना ही होगा वरना भारत का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।उस राष्ट्र को बर्बाद होने से कोई नही रोक सकता जिस राष्ट्र के बुद्धजीवी अपनी सरकारों की दमनकारी और अलोकतांत्रिक नीतियों को चुप रहकर वैचारिक और नैतिक समर्थन प्रदान करने लगें।मत भूलिए कि आपका ऐसा करना एक ऐसे भारत को जन्म देने जा रहा जिसमें क्रूरता,अन्याय,धार्मिक उन्माद,निरंकुशता और राजशाही का बोलबाला होगा।क्या आप ऐसा ही भारत अपनी पीढ़ियों को हस्तगत करना चाहेंगे?यदि नही तो आइए शपथ लें कि हम अपने बलिदानियों के सपनो का भारत बनाने का तार्किक प्रयास करेंगे।एक ऐसा भारत जिसमें दया होगी,न्याय होगा,प्रेम होगा,साम्प्रदायिक सौहार्द और लोकतंत्र के उदात्त मूल्य होंगे।

                                                 ✍️  सईदुल हसन


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