महान शिक्षक दार्शनिक चिंतक क्रांतिकारी गुरु और नेता कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर संक्षिप्त टिप्पणी।
अब तक की दुनिया के ज्ञात इतिहास के सबसे बड़े चिंतक दार्शनिक वैज्ञानिक क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर मैं उन्हें नमन करता हूं।
मार्क्स ने कहा था कि' दार्शनिकों ने अभी तक दुनिया की व्याख्या की है । जबकि सवाल उसको बदलने का है'। मार्क्स जब यह कह रहे थे तो यह उनके दिमाग में सिर्फ कोरी कल्पना नहीं थी ।बल्कि उन्होंने दुनिया को बदलने के उस मूल सिद्धांत को खोज निकालने का अथक परिश्रम किया था। जिसके कारण दुनिया में सामाजिक क्रांतियां हुआ करती हैं। साथ ही उन्होंने सामाजिक क्रांतियों के उस नेता की भी तलाश की जिसके नेतृत्व में अब तक मनुष्य समाज में नए-नए कांतिकारी बदलाव हुए हैं।
मार्क्स उस समय पूंजीवादी सभ्यता के बीच से गुजर रहे थे । साथ ही पूंजीवाद केअध्ययन में संलग्न थे। पूंजीवाद के उन आंतरिक कारकों की व्याख्या करने मैं लगे हुए थे। जिसके कारण समय-समय पर पूंजीवाद के गर्भ मे पल रही क्रांतियों के तूफान उठ खड़े हो रहे हैं।
मार्क्स ने उस वर्ग की तलाश की जो पूंजीवादी समाज को बदलने की अगुवाई करेगा। उनके अनुसार वह वर्ग सर्वहारा वर्ग है। "जिसके पास खोने को पैरों की बेड़ियों के अलावा कुछ नहीं है और पाने के लिए सारी दुनिया का राज है।"
आगे उन्होंने कहा कि मजदूरों का कोई अपना देश नहीं होता। उन्हें स्वयं सर्वहारा राज्य की स्थापित करनी होंगी। इसलिए उन्होंने आवाहन किया कि" दुनिया के मजदूरों एक हो।"
मार्क्स पूंजीवाद की व्याख्या और अध्ययन करते हुए उस कारक तक पहुंचे जिसके कारण दुनिया में सामाजिक क्रांतियां आकार लेती है। उन्होंने कहा समाज का पूरा ढांचा समाज के उत्पादन के साधनों में आए बदलाव और उत्पादन शक्तियों के सक्रिय युग्म पर आधारित और निर्मित होता है।"साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि' हर दौर का विचार (यानी संस्कृति रीति रिवाज रहन-सहन और चिंतन प्रणाली) उस समय के शासक वर्ग का विचार होता है।"
उन्होंने पूंजीवाद की व्याख्या करते हुए उजरती श्रम पर जीने वाले सर्वहारा वर्ग की तलाश की 'जो आने वाले समय में समाजवादी क्रांति की अगुवाई करेगा।'
एरिक हाब्सवाम ने एक संस्मरण में लिखा था कि एक सम्मेलन में उदारवाद के जनक जोसेफ स्टिजलिंग ने उनके करीब आकर कान में फुसफुसाते हुए कहा था" कि चाहे जो भी हो लेकिन तुम्हारा ठिगना गुरु आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रासंगिक है। उसका चिंतन गजब और लाजबाव है। आगे जोसेफ ने कहा एरिक यह आज भी सच है कि पूंजीवादी दुनिया को बचाने वाले या उसे बदलने वाले किसी भी समाज या वर्ग को अंततोगत्वा मार्क्स के चिंतन के रास्ते से ही गुजरना होगा।"बाद के दिनों में उदारवादी अर्थव्यवस्था के प्रणेता होने के नाते जोसेफ को नोबेल पुरस्कार दिया गया।
मार्क्स ने कहा के पूंजीवाद के गर्भ में पल रहा सर्वहारा आने वाले समय में पूंजीवाद को समाप्त करने के लिए समाजवादी कांथियों की अगुवाई करेगा। समाजवादी क्रांति के काल क्रम में राज्य के रूप में संगठित सर्वहारा अंततोगत्वा ऐतिहासिक विकास क्रम में साम्यवादी समाज की रचना करने में सक्षम होगा ।उस समय दमनकारी राज्य धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगा और दुनिया में साम्यवादी समाज की स्थापना होगी।
तब मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत हो जायेगा। "उस समय हर व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता के अनुकूल काम करेगा और समाज उसको उसकी जरूरत के अनुकूल उसे प्रदान करेगा।"तब समाज के नियामक के रूप में दमनकारी राज्य की जरूरत नहीं होगी।
आज जब उदारीकरण की परियोजना संकटग्रस्त हो कर स्वयं पूंजीवादी लोकतंत्र को समाप्त कर एक बार फिर विश्व में फांसी वादी दक्षिणपंथी निजाम थोपने की कोशिश में संलग्न है और उसके खिलाफ दुनिया में उठ रहे जन संघर्षों की लहरों के वेग तेज से तेजतर होते जा रहे हैं। तो एक बार पुनः मार्क्स ऐतिहासिक रूप से प्रासंगिक हो गये हैं।
अब तक के मानव सभ्यता के सबसे विराट मस्तिष्क, चिंतक, योद्धा और सर्वोपरि महान क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स के जन्मदिन पर मैं उनके समक्ष नत सिर हूं।
कार्ल मार्क्स और उनके चिंतन अमर रहे।
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